परिवर्तनशीलता प्रकृति का शास्‍वत नियम है, क्रिया की प्रक्रिया में मानव जीवन का चिरंतन इतिहास अभिव्‍यंजित है।

शनिवार, 1 सितंबर 2018

लौट आओ माँ (बस एक बार)

रचयिता : राधा




दिन वही है रात वही है
चाँद वही है तारे भी वही है
पर मुझे सब बदला सा लग रहा है।
क्यों, क्योंकि इस दुनिया में अब तुम नहीं हो माँ।
          तुम्हीं तो हमारी दुनिया थी
          तुम्हीं तो हमारी खुशियां थी
          हर दुख में हमारे साथ थी
          हर सुख में हमारी खास थी
          दूर होकर भी हमारे पास थी
अब तेरे बच्‍चें तरसेंगे तेरे प्यार को
तरसेगें तेरी झलक को
तरसेंगे तेरी मौजूदगी को
तरसेंगे तेरी बातों को
जो रोज किया करती थीं फोन पर
तरसेंगें तेरे आर्शीवाद को
तरसेंगे तेरी उस फिक्र को
जो हमारे लिए किया करती थी माँ।
तरसेंगें तेरे बच्‍चे तेरी सलाह को,
जो मुश्किलों में दिया करती थी माँ,
अब तेरे बच्‍चों को परेशानियों से कौन निकालेगा
कौन हमें दुखों में तसल्ली देगा।
          हम तो तेरे जाने का ही दुख
          सहन नहीं कर पा रहें
          हर वक्‍त तुम्हारी यादें
          हर वक्‍त तुम्हारा चेहरा
          हमारे चारों तरफ घूमता रहता है माँ।
                   अब तो सपनों में भी दिखाई नहीं देती माँ।
तेरे बच्‍चों को भ्रम था
माँ को कभी कुछ नहीं होगा
माँ तो हमारी अमर है
जीवनभर माँ हमें प्यार करेगी
जीवनभर हमें रूठने पर मनाएगी
जीवनभर हमारे पास रहेगी
तभी तेरे बुलाने पर भी हम
तुमसे मिलने नहीं आ पाते थे
हम आने में मजबूर है बताते थे
पर आज जब तुम नहीं हो माँ
तुम्हारा बुलाना याद आता है
अपने-आप को हम कौसते हैं
क्‍यूँ, आखिर क्‍यूँ तुम्हारे बुलाने पर
नहीं मिले हम तुमसे माँ।
          तुम्हारे बुलाने को ठुकराया
          हमारी गलतियों की सजा तुमने
          खुद को हमसे दूर करके दी माँ
          एक बार भी हमें मनाने का मौका नहीं दिया माँ।
जाते-जाते भी माँ ममता का फर्ज अदा कर गई
अंतिम दिनों के दो दिन मेरी यादों में भर गई
जिंदगी भर कर्जदार रहूँगी माँ के इस अहसान का
उन दो दिनों में कितनी कीमती यादें मुझे माँ दे गई।
भाभी है, भाई है,
भतीजा है, भतीजी है
          पर अब मायका, मायका नहीं लगता
          घर खाली-सा हो गया है माँ।
          बस जो एक तुम नहीं हो
          मायके जाने की वो खुशी
          मन को अब हर्षित नहीं करती
          जितनी तुम्हारे होने पर होती थी
          रात को नींद नहीं आती माँ
          बस तुम्हारी यादें आकर दिल को नोचती हैं
          मन में सुईंया चुभाती हैं
          काश! काश वो समय वो दिन
          फिर से लौट आए जब
          तुम जा रही थी,
          और हम तुम्हें रोक लेते
          कहीं जाने नहीं देते, जाने न देते माँ।
बाबूजी भी हर जगह तुम्हें ही ढूँढते हैं
तुम्हारे साथ होने पर अच्छा महसूस करते थे
बेफिक्र होकर सोते थे
जब से तुम गईं, बाबूजी सोना भूल गए
और भी ज्यादा बीमार हो गए
तुम तो अच्छी तरह जानती थीं माँ
तुम्हारे बिना बाबूजी रह नहीं पाते हैं
अकेले खा नहीं पाते
अकेले कहीं जा नहीं पाते
फिर बाबूजी को अकेला छोड़
क्यों चली गई माँ
अब तुम्हारी बेटियों को
फोन करके कौन पूछेगा माँ
कैसी है ललतिया, कैसी है मालती,
कैसी है गीता, कैसी है सीमा
कैसी है बेटी राधा,
अब हमें कौन फोन करके पूछेगा माँ
कौन हमारी चिंता करेगा।
बस एक बार फिर से
अपनों बच्‍चों के पास
बाबूजी के पास लौट आओ न माँ।
          अगर भगवान भी मुझसे कोई इच्छा पूछे
          तो यही कहूँगी, हे भगवान एक बार
          फिर से लौटा दो हमारी माँ,
          लौटा दो हमारी माँ, लौटा दो हमारी माँ।
वो हमें प्यार करने वाली, वो हमारी फिक्र करने वाली
हमारे दुखों को खुशियों में बदलने वाली
हमेशा भगवान से हमारे लिए दुआएँ माँगने वाली
पहले खिलाकर बाद में खाने वाली
खुद रोकर भी हमें हँसाने वाली
सारी दुनिया से हमारे लिए लड़ने वाली
परेशानियों में मदद करने वाली, हौसला देने वाली
हे ईश्‍वर वापस लौटा दो हमारी माँ,
वापस लौटा दो हमारी माँ,
वापस लौटा दो हमारी माँ

बस एक बार, बस एक बार, लौट आओ न माँ
हमारे लिए, सबके लिए।