दो वक्त की रोटी के लिए
इंसान दीवाना बना फिरता है
रब की हर चौखट पर
माथा रगड़ता मिलता है
भाग्य चमकाने के लिए
क्या-क्या नहीं फिर करता
है
मन्दिर का तिलक, मस्जिद की
भभूति
बाबाओं की दी लोंग-ईलायची
मुँह में दबाए फिरता है
सभी के नियमों को
मन में बसाए फिरता है
भूखा हो खुद मगर
चिडि़यों को दाना, मछली को
गोली
मंदिरों में जाकर भंडारा कराए
फिरता है
जेब हो खाली मगर, दान दिया
करता है
सब करता है, एक उम्मीद लिए
नसीब मेरा चमक जाएगा
एक दिन तो भाग्य मेरा
उज्ज्वल ही बन जाएगा।
इन सबके बाद भी जब
काम नहीं बनते उसके
दिल टूट जाता है
उम्मीद भी छूट जाती है
हाथ में बस मेहनत
सिर्फ मेहनत ही रह जाती है
टोने-टोटके से काम नहीं
बनते यारो
ये तो एक भ्रम है जो सपने
बड़े दिखलाता है
मेहनत ही एक सच है, जो राह
हमें दिखलाता है
मेहनत कर सिर्फ मेहनत कर
एक दिन तेरा काम ही रंग
लाएगा
जिसे ढूंढता है
मंदिर-मस्जिद में
वो तेरे भीतर ही मिल जाएगा
तेरी किस्मत का बंद ताला
एक दिन खुल जाएगा।
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