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यह मेरे बचपन का छायाचित्र है। |
न झूठ न फरेब
न ही कोई धोखा
ऐसा होता है
यह प्यारा सा बचपन
वो पल में रूठना
पल में ही मान जाना
अपनी शर्तो को
चुटकियों में मनवाना
याद आता है मुझको
वो बचपन सुहाना
कोई चिंता न थी
न थी कोई फिकर
वो वर्षा के पानी को
देखकर ललचाना
मां से बचकर
झूम-झूमकर नहाना
कागज की नाव बना
फिर उसमें दौड़ाना
याद आता है मुझको
वो बचपन सुहाना
मित्रों की संगत में
खेलते थे ऐसे
ना खाने की फिकर थी
न पीने की चिंता
जिंदगी हसीन थी
वो दुनिया रंगीन थी
सपनों का आसमां था
कल्पनाओं की जमीन थी
याद आता है मुझको
वो बचपन सुहाना
काश! लौट फिर आता
वो बचपन सुहाना
वो बचपन सुहाना!!© सर्वाधिकार सुरक्षित। लेखक की उचित अनुमति के बिना, आप इस रचना का उपयोग नहीं कर सकते।
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