कवियत्री : निर्मल राज
कल ना हमारा है
ना किसी और का
कल तो सिर्फ
अपना है
जो जीता है
अपने लिए बड़ी शान से
जो आज है
जीवन का एक दिन
वो दिन हमारा है
जीयो आज
सीना तानकर
दुख की परछाई
डूब गई अपने ही भीतर
जो फैला रखा था
चहूँ ओर काला साया
बड़ी दूर तक
नहीं छोड़ा उसने
कल के इंतजार में
लेकिन कल का पता नहीं
आज तो है।
एक नई रोशनी भरी
नमी किरण मन को लूभा गई
हर्षित मन धीरे से मुस्कुराकर कह उठा
नन्हीं-नन्हीं टिम-टिमाती
उजली किरन नमन तुम्हें
जीने की चाहत की
उमंग जगा कर
भिन्न-भिन्न रंगों से सजाया वातावरण
जिन्दगियाँ खिल-खिल
लहरों में बहने लगी
उजड़े चमन बाग-वान हुए
जियो आज हँसी-खुशी के साथ
आज दिन हमारा है
कल किसी और का...।
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