परिवर्तनशीलता प्रकृति का शास्‍वत नियम है, क्रिया की प्रक्रिया में मानव जीवन का चिरंतन इतिहास अभिव्‍यंजित है।

शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

गम


कवयित्री : निर्मल राज

कितना अनमोल है यह पल
जो खेल रहे हैं मिलकर
एकांत में बैठकर खेल
मैं और मेरा गम।
आज महसूस हुआ मुझे
कि कितना अपना है यह पल
और यह गम
कभी सोचा भी नहीं था कि
इस तरह अकेला छोड़कर मुझे
मुट्ठी में बँधी रेत की तरह
खिसक जाएगी मेरी दुनिया,
अब तो सिर्फ रह गया
मेरा दोस्‍त गम।
कितना वफादार है
कि साथ नहीं छोड़ता पल भर भी
तनहाई में भी!

© सर्वाधिकार सुरक्षित। लेखक की उचित अनुमति के बिना, आप इस रचना का उपयोग नहीं कर सकते।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें