परिवर्तनशीलता प्रकृति का शास्‍वत नियम है, क्रिया की प्रक्रिया में मानव जीवन का चिरंतन इतिहास अभिव्‍यंजित है।

शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

जिन्दगी से मुलाकात



एक दिन हमको राह में
मिल गई यूं जिन्दगी
हमने उसको धर दबोचा
आज पकड़ में आई जिन्दगी


हमने पूछा ये बताओ
कहां से आ रही तुम जिन्दगी
चुपचाप थी वो, कुछ न बोली
सिर झुकाए थी जिन्दगी


मैं अचम्भित में हुआ
चुपचाप उसको देखकर
हृदय में उथल-पुथल मचाती रही
सभी की परेशानियां बढ़ाती रही


नाच नचाती थी सभी को
आज क्यों निस्तब्ध खड़ी
मैंने पूछा जिन्दगी क्या
तेरी जिन्दगी भी परेशानियों में घिरी


इतना कहना था कि
जिन्दगी फूट-फूटकर रो पड़ी
और बोली, क्या बताऊं अरे इंसान
कैसे-कैसे इंसानों के आज मैं पल्ले पड़ी


इंसानों के कारण ही आज मुझे
इस कदर रोना पड़ा
इंसान ने जो अपना दोष, मेरे सिर पर मड़ दिया
इनके कारण ही मुझे आज समस्याओं से घिरना पड़ा


इंसान की इतनी ख्वाहिशें हैं
मैं भला अब क्या करूं?
ये भी दे दो, वो भी दे दो
हाय-हाय करता फिरे


जो न हो पाए पूरी तमन्‍ना
तो इसके लिए मैं बदनाम हूं
जिन्‍दगी मेरी खराब है
दुनिया में कहता फिरे।


जिन्दगी को इंसान ने अपनी खुद
समस्याओं से है भर दिया
दोष देता जिन्दगी को
जिन्दगी तूने मुझे क्या-क्या दिया


जो भी दिया है जिन्दगी ने
गर तू उससे संतुष्ट है
ख्वाहिशों पर लगा ले बंदिशे गर
तो मैं भी खुश हूं, तू भी खुश है


पहले के इंसान ने
अपनी इच्छाओं को है कम किया
जो मिला खुशी से लिया और
खुश होकर वो जिया


और ज्‍यादा, ज्यादा-ज्यादा
पाने की फितरत जो है, आज के इंसान में
घर दिया भगवान ने तो, सोफासेट चाहिए
सोफा सेट जो आ गया तो, बैड भी तो चाहिए


ख्वाहिशें इंसान की होती नहीं, कभी भी कम
न मिले तो जिन्दगी को कोसता वह हरदम
जिन्दगी को तूने अपनी, बेकार इतना कर लिया
खुद भी रोता है पकड़ सिर, मुझको भी रोना पड़ा


ज्यादा ख्वाहिशें करके जीवन, नर्क अपना मत बना !
जो दिया भगवान ने, उसको सर-माथे अपने लगा !!

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