परिवर्तनशीलता प्रकृति का शास्‍वत नियम है, क्रिया की प्रक्रिया में मानव जीवन का चिरंतन इतिहास अभिव्‍यंजित है।

शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

गम


कवयित्री : निर्मल राज

कितना अनमोल है यह पल
जो खेल रहे हैं मिलकर
एकांत में बैठकर खेल
मैं और मेरा गम।
आज महसूस हुआ मुझे
कि कितना अपना है यह पल
और यह गम
कभी सोचा भी नहीं था कि
इस तरह अकेला छोड़कर मुझे
मुट्ठी में बँधी रेत की तरह
खिसक जाएगी मेरी दुनिया,
अब तो सिर्फ रह गया
मेरा दोस्‍त गम।
कितना वफादार है
कि साथ नहीं छोड़ता पल भर भी
तनहाई में भी!

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अलविदा


कवयित्री : निर्मल राज

आज मेरा आखिरी दिन है
इस घर में
इस घर से मैं जा रहा हूँ
मेरे साथ गुजरा सामर्थ्‍य की थाती
जिसमें हम तुम, सबको
खूब रुलाया, खूब हँसाया
खूब मचाई तबाही
कई लोगों के घर-बार छीने
कइयों का छीना बाल-परिवार
माँ-बाप, भाई-बहन
सब बिछुड़ गए
मेरे होते हुए
मैं देखता रहा खूँटी पर टँगा हुआ
अपनी आँखों के झरोखे से
देख रहा था
चारों तरफ बहते हुए लोगों को
डूबती हुई लाशें, ये उपवन, अनेक जीव-जंतु
कई लंबी-लंबी इमारतें,
आलीशान बँगले, कितनी ही झोपडि़याँ
सब बह गया जल-प्रवाह में
कुछ भी नहीं बचा उत्‍तराखंड में
बचा केवल खाली शिव मंदिर
अगर मेरी याद आए तो, दोस्‍तो
इतिहास के पन्‍ने खोलकर देख लेना
जो रचा था मैंने, दो हजार तेरह में
मैं फिर उजागर हो जाऊँगा
याद दिलाने के लिए
इस भयंकर तबाही की
क्‍योंकि, भूत होता ही है
सिर्फ याद रह जाने के लिए
आज मैं अपने जीवन का
अंत कर रहा हूँ
अलविदा, दोस्‍तो।

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गुरुवार, 18 अगस्त 2016

मरी हुई आत्माएँ













आज के इंसान का जमीर इतना गिर गया
खुद तो जिंदा है मगर, अंतरात्‍मा से मर गया
शिक्षा-विद्या में बहुत, आगे वो बढ़ता ही गया
मगर, दहेज जैसे पाप को आज भी ढोता गया।

अपनी बेटियाँ उसे लगती बड़ी प्‍यारी मगर
दूसरे की बेटियों को देखकर ललचा रहा
नौजवा घर में बैठकर डिग्रियाँ गिनता रहा
पैसों के जोर पर, वो नौकरियां लगवा रहा।

आज के इंसान का जमीर इतना गिर गया।
खुद तो जिंदा है मगर, अंतरात्‍मा से मर गया।।

जिस माँ ने उसको पैदा किया, उसको गाली दे रहा
जिस पिता ने काबिल किया, उसको भी धक्‍का दे रहा
दो वक्‍त की रोटी जो, माँ-बाप को खिला दी अगर
उस रोटी का हिसाब भी गिन-गिनकर वो ले रहा।

आज के इंसान का जमीर इतना गिर गया।
खुद तो जिंदा है मगर, अंतरात्‍मा से मर गया।।

चलना सिखाया पिता ने जिसका हाथ पकड़कर
अच्‍छा बुरा सभी बतलाया, संस्‍कारों का पाठ पढ़ाकर
पिता की आँखों में हैं आंसु, यह व्‍यवहार देखकर
बेटे ने ही आज घर से, बाहर किया धकेलकर।

आज के इंसान का जमीर इतना गिर गया।
खुद तो जिंदा है मगर, अंतरात्‍मा से मर गया।।

बुरा न मानो दोस्‍तो, यदि शुरुआत कर लें बेफिकर
इन बुराइयों को समाज की, दूर कर दें हम अगर
इंसान को भगवान का मतलब समझ आ जाएगा
सोच होगी नई हमारी, एक नया परिर्वतन आएगा।

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रविवार, 14 अगस्त 2016

कहां गइला रजऊ

(शहीदों को श्रद्धांजलि)




जिन्‍दगी बेहाल भइल, कहां गइला रजऊ1
छिप गइला जाके कहां, अइला नाही रजऊ
तू त कहत रहला, जिन्‍दगी भर साथ बा
छोड़ के तू चल गइला, का भइल रजऊ
जिन्‍दगी बेहाल भइल, कहां गइला रजऊ।

ना भावे चूड़ी हमके, ना भावे टिकुली2
ना ही अच्‍छी लागे रतियां3, ना ही चंदनिया4
दिल में कसक उठे, ख्‍वाब भइला रजऊ
छोड़ के तू चल गइला, का भइल रजऊ
जिन्‍दगी बेहाल भइल, कहां गइला रजऊ।

खेतवा में लागे न मन, गांव जवरिया5
सूनी-सूनी लागे हमके सगरी डहरिया6
दुनिया बेकार भइल, तोहरे बिना रजऊ
छोड़ के तू चल गइला, का भइल रजऊ
जिन्‍दगी बेहाल भइल, कहां गइला रजऊ।

न भावे चूल्‍हा हमके, न भावे चौउका7
न भूख प्‍यास लागे, नाही लागे निंदिया
तड़फे मछरिया8 जैसे, जल बिन रजऊ
छोड़ के तू चल गइला, का भइल रजऊ
जिन्‍दगी बेहाल भइल, कहां गइला रजऊ।

केकरा9 से दूख आपन, कहीं हम रजऊ
सब जग उदास भइल, तोहरे बिना रजऊ
कैसे बिताईं जिन्‍दगी, तोहरे बिना रजऊ
छोड़ के तू चल गइला, का भइल रजऊ
जिन्‍दगी बेहाल भइल, कहां गइला रजऊ।

आवे का वादा करके, गइल रहला रजऊ
अपने देस की खातिर, शहीद भइला रजऊ
अब न कोई भेजी हमके, चिट्ठी-पतरिया
छोड़ के तू चल गइला, का भइल रजऊ
जिन्‍दगी बेहाल भइल, कहां गइला रजऊ।।

(1. रजऊ = प्‍यार से पति को कहते हैं, 2. बिंदी, 3. रात, 4. चांदनी, 5. इलाका, 6. रास्‍ता,       7. रसोई, 8. मछली, 9. किस से।)

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रविवार, 7 अगस्त 2016

माँ की यादें

(स्‍वर्गीय माँ को समर्पित)


ऑफिस से जब घर आता हूँ
वही माँ का कमरा
जिसमें वह बैठी रहती थी
अब सूनापन नजर आता है।

बैड पर बैठी रहती थी माँ
कुछ न कुछ कहती रहती थी माँ
न जाने कहाँ चली गई माँ
अब सूनापन नजर आता है।

कमरे में दाखिल होते ही
माँ की पहली आवाज
आज भी बहुत याद आती है
अरे गुडि़या पानी ले आ।

आज नहीं आती आवाज
सिर्फ रहता है उनका अहसास
महसूस होती है उनकी आवाज
अरे गुडि़या पानी ले आ।

जब वह थी, तब लगता था
क्‍यों बक‍बक करती रहती है माँ
आज जब नहीं है तो लगता है
क्‍यों हमारे पास नहीं है माँ।

माँ जब पास नहीं होती
याद आती है उसकी चिंताएँ, अच्‍छाइयाँ
उसकी कहावतें, उसकी गहराइयाँ
याद आती है उसकी हर बात।

याद आता है वो माँ का
त्‍यौहारों पर लड्डू बाँटना
चुपके से अपना भी हिस्‍सा
हम सभी में बाँटना
अब सूनापन नजर आता है।

आज माँ जब है नहीं
त्‍यौहार भी फीका लग रहा
लड्डू भी तीखा लग रहा
मन भी कहीं न लग रहा।

लोग हैं घर में बहुत
माँ जैसा कोई सच्‍चा नहीं
सबके चेहरों पर हैं चेहरे
माँ के रूप जैसा अच्‍छा नहीं।

जब मैं होता था मुश्किलों में
मुझको सहारा देती थी तुम
आज भी हैं मुश्किलें, पर साथ मेरे तुम नहीं
तेरी यादों के सहारे, मुश्किलें सुलझाता हूं मैं।

आज भी आती हो तुम, बच्‍चों को सहलाती हो तुम
पास मेरे बैठकर, प्‍यार दिखलाती हो तुम
जब सपना मेरा टूटता है, दूर चली जाती हो तुम
बहुत रूलाती हो तुम, बहुत रूलाती हो तुम।

याद रखना दोस्‍तो
है सबसे गुजारिश मेरी
माँ बहुत है कीमती, बार-बार मिलती नहीं
माँ है जिनके पास, कभी दूर अपने से करना नहीं।
अंतिम समय हो माँ का जब, पीछे कभी हटना नहीं।

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शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

जिन्दगी से मुलाकात



एक दिन हमको राह में
मिल गई यूं जिन्दगी
हमने उसको धर दबोचा
आज पकड़ में आई जिन्दगी


हमने पूछा ये बताओ
कहां से आ रही तुम जिन्दगी
चुपचाप थी वो, कुछ न बोली
सिर झुकाए थी जिन्दगी


मैं अचम्भित में हुआ
चुपचाप उसको देखकर
हृदय में उथल-पुथल मचाती रही
सभी की परेशानियां बढ़ाती रही


नाच नचाती थी सभी को
आज क्यों निस्तब्ध खड़ी
मैंने पूछा जिन्दगी क्या
तेरी जिन्दगी भी परेशानियों में घिरी


इतना कहना था कि
जिन्दगी फूट-फूटकर रो पड़ी
और बोली, क्या बताऊं अरे इंसान
कैसे-कैसे इंसानों के आज मैं पल्ले पड़ी


इंसानों के कारण ही आज मुझे
इस कदर रोना पड़ा
इंसान ने जो अपना दोष, मेरे सिर पर मड़ दिया
इनके कारण ही मुझे आज समस्याओं से घिरना पड़ा


इंसान की इतनी ख्वाहिशें हैं
मैं भला अब क्या करूं?
ये भी दे दो, वो भी दे दो
हाय-हाय करता फिरे


जो न हो पाए पूरी तमन्‍ना
तो इसके लिए मैं बदनाम हूं
जिन्‍दगी मेरी खराब है
दुनिया में कहता फिरे।


जिन्दगी को इंसान ने अपनी खुद
समस्याओं से है भर दिया
दोष देता जिन्दगी को
जिन्दगी तूने मुझे क्या-क्या दिया


जो भी दिया है जिन्दगी ने
गर तू उससे संतुष्ट है
ख्वाहिशों पर लगा ले बंदिशे गर
तो मैं भी खुश हूं, तू भी खुश है


पहले के इंसान ने
अपनी इच्छाओं को है कम किया
जो मिला खुशी से लिया और
खुश होकर वो जिया


और ज्‍यादा, ज्यादा-ज्यादा
पाने की फितरत जो है, आज के इंसान में
घर दिया भगवान ने तो, सोफासेट चाहिए
सोफा सेट जो आ गया तो, बैड भी तो चाहिए


ख्वाहिशें इंसान की होती नहीं, कभी भी कम
न मिले तो जिन्दगी को कोसता वह हरदम
जिन्दगी को तूने अपनी, बेकार इतना कर लिया
खुद भी रोता है पकड़ सिर, मुझको भी रोना पड़ा


ज्यादा ख्वाहिशें करके जीवन, नर्क अपना मत बना !
जो दिया भगवान ने, उसको सर-माथे अपने लगा !!

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