परिवर्तनशीलता प्रकृति का शास्‍वत नियम है, क्रिया की प्रक्रिया में मानव जीवन का चिरंतन इतिहास अभिव्‍यंजित है।

बुधवार, 27 जुलाई 2016

पराई थी, हूं, रहूंगी

साभार

एक स्त्री के कदम, जब पड़े
अपने विवाहित संसार में,
उसने सभी को स्वीकारा
अपने पति के परिवार में।

सास-ससुर, नंद, देवर

जेठ-जेठानी और पति
पति के रिश्तेदार, सगे-संबंधी
सभी से जुड़ी, एक ही तार में।

वह सभी को खुश करने की

कोशिश में लगी रहती है, पर
नाकाम रह जाती है, नए परिवार में
नाराजगी दिखती है, सभी के व्यवहार में।

सभी ने कहा, बहु हमारी

मन की नहीं आई
तभी तो अब तक कोई खूबी
हमें नजर नहीं आई।

पर शायद किसी को

यह नहीं पता होगा
हर स्त्री में यह खूबी
दी है भगवान ने।

जिस परिवार में, जन्मी पली-बढ़ी

उसे पलभर में छोड़ चली
आकर मिल गई, एक नए संसार में।

स्त्री की इस मनोदशा को

कोई कभी समझ नहीं पाएगा
किस मन से छोड़ा उसने मां-बाप का घर
और आई अपने नए परिवार में।

जो कभी बेटी, बहन और दीदी थी

आज केवल बहु, भाभी और पत्नी बनी
प्यार से कर्तव्यों को निभाती है
फिर भी किसी के मन में बस नहीं पाती है

न जाने क्यों बहु को लोग 

बेटी, बहन और दीदी बना नहीं पाते हैं
वो पराई थी, पराई है और
पराई ही रह जाती है।

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