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यह कविता उस बच्ची को समर्पित है, जो पैदा होते ही मृत्यु की गोद में समा गई। |
कवियत्री : निर्मल राज
नौ महीने कोख में
रखकर
दर्द से सिंचा था मैंने
एक नन्हीं सी पौध
बनकर
उगेगी आंगन मेरे
खिलेगी शबनम की तरह
महकेगी गुल-बहार बनकर
गूँजेगी किलकारियाँ
तेरी
मीठी-मीठी धुन में
चिडि़याँ गाएँगी गीत
खुशी के
बस तेरे आने के
इंतजार में
वो वक्त भी आ गया
स्पर्श किया माँ की
गोद को
जैसे आसमान से उतरी
परियों की रानी थी
तू
न मैंने जी-भर देखा
न ही जी-भर प्यार
किया
आते ही क्यों रूठ
गई
अग्नी में सिमट गईं
जल की जलपरी बन
रूलाती हुई चली गई
मखमल की तरह कोमल थी
रूई के जैसे हल्की-फुल्की
गौरी-निर्मल कंचन
काया
तेरा ये राज लाड़ली-
कुछ भी समझ न आया
जीवन मिला, जुदाई हुई
एक पल में तेरी विदाई
हुई
क्यों मेरी बच्ची
केवल एक सांस की
खातिर
एक ही पल के लिए
तूने
हमें माँ-बाप का
अहसास दिया
दादा-दादी, ताऊ-ताई
नाना-नानी,
मामा-मामी
सब परिवार तेरा अपना
था
फिर क्यों डर गई जीनेे से
जो देखें हमने मिलकर
सपने
सब तेरी एक सांस में
सिमट गए
फिर से लौट आना मेरी
लाड़ली
तेरे आने का इंतजार
पहले भी था, अब भी है, और
हमेशा रहेगा...
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NICE..... VERY NICE..... DIL KO CHU GAI....
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