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(स्वर्गीय माँ को समर्पित) |
ऑफिस से जब घर आता हूँ
वही माँ का कमरा
जिसमें वह बैठी रहती थी
अब सूनापन नजर आता है।
बैड पर बैठी रहती थी माँ
कुछ न कुछ कहती रहती थी माँ
न जाने कहाँ चली गई माँ
अब सूनापन नजर आता है।
कमरे में दाखिल होते ही
माँ की पहली आवाज
आज भी बहुत याद आती है
अरे गुडि़या पानी ले आ।
आज नहीं आती आवाज
सिर्फ रहता है उनका अहसास
महसूस होती है उनकी आवाज
अरे गुडि़या पानी ले आ।
जब वह थी, तब लगता था
क्यों बकबक करती रहती है
माँ
आज जब नहीं है तो लगता है
क्यों हमारे पास नहीं है
माँ।
माँ जब पास नहीं होती
याद आती है उसकी चिंताएँ, अच्छाइयाँ
उसकी कहावतें, उसकी
गहराइयाँ
याद आती है उसकी हर बात।
याद आता है वो माँ का
त्यौहारों पर लड्डू बाँटना
चुपके से अपना भी हिस्सा
हम सभी में बाँटना
अब सूनापन नजर आता है।
आज माँ जब है नहीं
त्यौहार भी फीका लग रहा
लड्डू भी तीखा लग रहा
मन भी कहीं न लग रहा।
लोग हैं घर में बहुत
माँ जैसा कोई सच्चा नहीं
सबके चेहरों पर हैं चेहरे
माँ के रूप जैसा अच्छा नहीं।
जब मैं होता था मुश्किलों
में
मुझको सहारा देती थी तुम
आज भी हैं मुश्किलें, पर
साथ मेरे तुम नहीं
तेरी यादों के सहारे, मुश्किलें
सुलझाता हूं मैं।
आज भी आती हो तुम, बच्चों
को सहलाती हो तुम
पास मेरे बैठकर, प्यार दिखलाती
हो तुम
जब सपना मेरा टूटता है, दूर
चली जाती हो तुम
बहुत रूलाती हो तुम, बहुत
रूलाती हो तुम।
याद रखना दोस्तो
है सबसे गुजारिश मेरी
माँ बहुत है कीमती, बार-बार
मिलती नहीं
माँ है जिनके पास, कभी दूर
अपने से करना नहीं।
अंतिम समय हो माँ का जब, पीछे
कभी हटना नहीं।© सर्वाधिकार सुरक्षित। लेखक की उचित अनुमति के बिना, आप इस रचना का उपयोग नहीं कर सकते।
dil ko chhu jane wali kavita!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर, ब्लॉग के लिए आपका सहयोग एवं आशीर्वाद अपेक्षित है।
हटाएंसबसे खूबसूरत कविता हमारे साथ शेयर करने के लिए धन्यवाद। उम्मीद है इस बलॉग के माध्यम से लोग आपके व्यक्तित्व और अच्छे स्वभाव को समझ पाएंगे।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मसूद जी। इस ब्लॉग के माध्यम से आप तथा सभी मित्रों को अपनी तथा अन्य लेखकों की रचनाएं शेयर करता करता रहूंगा। आशा करता हूं आप सभी मित्रों की प्रतिक्रियाएं ही मुझे सही मार्ग दिखाएगी।
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